– श्री सुरेंद्र कुमार अग्रवाल
मानव जीवन अपने आप में एक अमूल्य उपहार हैं । जीवन सर्वोत्तम उत्कृष्टता के साथ जीने से सार्थक व सफल होता है । सब में परमात्मा के स्वरूप के दर्शन कर, मानवता की रक्षा, मानव मूल्यों हेतु हम अपने को सदा आगे रखें। सिक्ख गुरु साहिबान ने अपने व्यक्तिगत सुख व आकांक्षाओं को छोड़कर दूसरों के कल्याण हेतु संघर्ष किया, ज़रूरत पड़ी तो बलिदान देने में भी पीछे नहीं हटे, तभी वे समाज में सर्वोत्तम आदर्श व पूज्य व्यक्तित्व बन गए ।
माया का लोभ, भ्रांतियों और रूढ़ियों में जकड़े रहना, रोग-शोक का कारण हैं । हम आत्म सुधार कर अपनी मलीनताओं को दूर कर परिष्कृत व उदार सेवाभावी बनें। आत्म सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है। जो भी अपूर्णताएं हैं, उन्हें अध्यात्म का सहारा लेकर दूर करने का प्रयास करें। जीवन में कोई ऐसा कार्य न करें, जिससे सिर झुकाना पड़े; कहीं अपमान सहना पड़े या कोई हमारी आलोचना करे। हम सही नीति पर चलते हुए श्रेष्ठ कार्य करें और समाज को ऊंचा उठाने में भरपूर योगदान दें।
हमारा लक्ष्य जन-जन की भलाई होना चाहिए। दूसरों की सेवा सहयोग में हमें भले कुछ कष्ट उठाना पड़े तो उसमें पीछे न रहें। हमारे गुरु साहिबान समाज सेवा में तत्पर रहे, उनका त्याग, बलिदान आज भी हमें दूसरों की सेवा – सहयोग करने की प्रेरणा देता है।
गलत कार्यों से दूर रहें : हम हर स्थिति में अवांछनीय गतिविधियों से बचें। अहंता जन्य ईर्ष्या से बचें, दूसरों की प्रगति देखकर उससे घृणा न करें। कभी भी किसी को नीचे गिराने का प्रयास न करें। हमारा अंत:करण जिस कार्य को करने की अनुमति न दे, वह गलत कार्य न करें। हम प्रतिदिन चिंतन करें, क्या हमसे कोई भूल तो नहीं हुई? आज हमने कोई अपराध तो नहीं किया? हमारे आचरण व्यवहार से किसी को दुख तो नहीं हुआ ? लोभ-लालच से कोई कार्य तो नहीं किया? हम किसी का अहित न करें, किसी से बदला लेने की भावना मन में न रखें। अगर हम श्रेष्ठ विचार और भावनाओं से अपने अंत:करण को प्रदीप्त कर सकें तो हमारा जीवन बाहर से भले साधारण दिखे लेकिन हमारी आत्मा परिष्कृत होगी, उसमें परमात्मा की ज्योति अवतरित होगी, जिससे हमें सुख-शांति और आनंद की अनुभूति होगी । लोग हमारे सानिध्य में आकर अपने को धन्य समझेंगे, सुख-शांति महसूस करेंगे।
शरीर और मन की पावनता : हमारा जीवन दर्शन आत्मवादी नहीं परहितवादी होना चाहिए । हम किसी भी स्थिति में दुष्टता, कुकर्म, अपराध, छल-कपट, प्रपंच न करें। निकृष्ट चिंतन से दूर रहें हमें अपने मस्तिष्क को हमेशा पवित्र रखना चाहिए, उसे किसी भी स्थिति में अपवित्र न होने दें हमारा मन, विचार और मस्तिष्क परमात्मा की क्रीड़ा स्थली हैं, उसे दुष्ट भावों से बचाये रखें। सदा श्रेष्ठ चिंतन और भावनाओं से अपने मन को पवित्र रखें। शरीर को आत्म संयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करें। श्रेष्ठ विचारों से अपने को सदा शोभायमान बनाये रखें। मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से बचाये रखने के लिए स्वाध्याय ( श्रेष्ठ पुस्तकों का अध्ययन ), गुरबाणी का पाठ एवं प्रभु- सिमरन से जुड़े रहें।
अपने शरीर, मन और व्यवहार को उज्ज्वल व उत्कृष्ट बनाने में लगे रहे यही प्रभु-सिमरन व ध्यान हैं; जिससे इस शरीर में रहने वाली आत्मा प्रसन्न रहे, आत्म गौरव बढ़ता रहे। शरीर की सफाई के साथ-साथ मन, विचार एवं भावनाओं की सफाई में सतत् लगे रहें। कभी भी श्रेष्ठ कार्यों में, सेवा में दूसरों के सहयोग में आलस्य प्रमाद न करें । आपसी मन-मुटाव भूलकर सब में एक ही परमात्मा का नूर (प्रकाश) है, जानकर सबसे मिल-जुलकर रहें, सबका आदर-सम्मान करें जिससे अपना गौरव बढ़ेगा और आपसी वैर – विरोध का नाश होगा |
समय का सदुपयोग करें : प्रकृति प्रदत्त सबसे प्रधान संपदा के रूप में जीवन के क्षण (समय) मिले हैं, जिसे व्यर्थ नष्ट न करें। सट्टा-जूआ, शराबखोरी, अपराध, मिलावट और घूसखोरी आदि गलत कार्य से अपने जीवन को पतित होने से दूर रखें। समय रूपी संपदा का सावधानीपूर्वक उपयोग करें। जो व्यक्ति समय का जितना उपयोग करता हैं, वह उतना ही ऊंचा उठता जाता है और सफलता खुद आकर उसके कदम चूमती है और प्रभु भी प्रसन्न होता है ।
प्रसन्नतापूर्वक सबका सम्मान करें : सभी से मधुर भाषण, नम्र व्यवहार करना, शिष्टता व शालीनता का व्यवहार करना सभी का आदर करना, चेहरे पर संतोष और उल्लास के साथ एवं सभी का सम्मान करने की कला सीखना ही हमारे सिक्ख सिद्धांतों में मनुष्य मात्र को समझाया गया है।
ईमानदारी से कर्त्तव्यों का निर्वाह करें : हमें हर स्थिति में नागरिक कर्त्तव्यों का पालन करते हुए अपने परिवार, समाज व राष्ट्र के प्रति जो कर्तव्य हैं, उन्हें कर्मठता, वीरता, ईमानदारी से पूर्ण करने चाहिए, सभी कर्त्तव्यों को ईमानदारी से करने से आत्म गौरव बढ़ता है और आत्म स्वाभिमान की रक्षा होती हैं।
हम मर्यादाओं का पालन करें, जो मर्यादा का पालन नहीं कर रहे हैं वे समाज, राष्ट्र व देश में आये दिन नित नई समस्याओं को जन्म दे रहे हैं । नाम – सिमरन, गुरबाणी का पाठ, श्रेष्ठ कर्मों द्वारा हम अपनी पशु प्रवृत्तियों व कुप्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखें। अधिकारों से अधिक अपने कर्त्तव्यों को ईमानदारी से पूर्ण करने हेतु सजग रहें। कभी किसी का धोखे से हक्क न छीने, प्रभु नाम का आ लेकर हमेशा ही ईमानदारी से कार्य करते रहें ।
गलत राह न पकड़ें : हमें सदैव अच्छे गुणों को ग्रहण कर सही रास्ते के पथिक बनना चाहिए, कभी भी गलत राह पकड़कर जल्दी सफल होने, ज्यादा धनवान बनने का प्रयास नहीं करना चाहिए । श्री गुरु नानक देव जी ने अमीर के मेवा मिष्ठान की अपेक्षा गरीब की रोटी को ही स्वीकार किया था। वही आदर्श हमारा होना चाहिए। हम न्याय नीति व त्याग के मार्ग पर चलते हुए ईमानदारी व परिश्रम से प्राप्त साधनों का ही उपयोग करें, हर स्थिति में अपने आत्म गौरव की रक्षा करें, ताकि हमें सुख- शांति व संतोष मिल सके। हमारा जीवन ऐसा हो कि हम हर स्थिति में आत्म गौरव दूसरों की भलाई, समय का सदोपयोग, किरत करने, नाम जपने, बांटकर खाने के सिद्धांत को अपने जीवन में चरितार्थ करने का भरसक प्रयत्न करते रहें, तभी हमारा मानवीय जीवन सफल माना जाएगा।