गुरबाणी विचार फलगुणि श्री गुरु अरजन देव जी

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February 13, 2025

गुरबाणी विचार

फलगुणि अनंद उपारजना हरि सजण प्रगटे आइ ||
संत साई राम के करि किरपा दीआ मिलाइ ॥
सेज सहावी सरब सुख हुणि दुखा नाही जाइ ॥
इछ पुनी वडभागणी वरु पाइआ हरि राई ||
मिलि सहीआ मंगलु गावही गीत गोविंद अलाइ ॥
हरि जेहा अवरु न दिसई कोई दूजा लवै न लाइ ॥
हलतु पलतु सवारिओनु निहचल दितीअनु जाइ ॥
संसार सागर ते रखिअनु बहुड़ि न जनमै धाइ ॥
जिहवा एक अनेक गुण तरे नानक चरणी पाइ ॥
फलगुणि नित सलाहीऐ जिस नो तिलु न तमाइ ॥। १३ ।। (पन्ना १३६ )

पंचम सतिगुरु श्री गुरु अरजन देव जी महाराज फाल्गुन मास के उपलक्ष्य में उच्चारण की गई इस पावन पउड़ी इस मास की ऋतु तथा वातावरण एवं लोक – सभ्याचार की पृष्ठभूमि में जीव- स्त्री को प्रभु नाम की सच्ची स्तुति गायन कर मनुष्य जीवन सफल करने का महामार्ग बख्शिश करते हैं ।

सतिगुरु जी फरमान करते हैं कि फाल्गुन मास में जब शीत ऋतु जाने लगती है और लोग खुशियां मनाते नज़र आते हैं, उस समय सौभाग्यशाली जीव स्त्रियों को प्रभु-मिलाप की इच्छा तथा उम्मीद लगती है। संत अथवा गुरु उनका प्रभु के साथ मिलाप का अपनी कृपामयी अगुआई से सबब बनाते हैं । उन जीव – स्त्रियों की जीवन रूपी रात सुखमय हो जाती है, दुखों का ग्रास नहीं बनती। सौभाग्यशाली जीव – स्त्रियों की इच्छा पूर्ण होती है और उनको प्रभु-पति मिल जाते हैं। वे अपनी सखियों के साथ प्रभु की उपमा के ही गीत गाती हैं और उन्हें प्रभु – पति के अतिरिक्त अन्य कोई नज़र नहीं आता। वे किसी दूसरे को अर्थात् सांसारिक ख्याल आदि को अपने मन-मस्तिष्क में जगह नहीं देती।

ऐसे में वे जीव – स्त्रियां अपना लोक और परलोक संवार लेती हैं। उनको सदीवी सुख-शांति की मानसिक- आत्मिक अवस्था प्राप्त हो जाती है। वे संसार रूपी सागर में डूबने से बच जाती हैं और पुनः जन्म-मरण के चक्र में नहीं पड़तीं अथवा जीवन-मुक्त हो जाती हैं । हम मनुष्य – मात्र को चाहे एक जीभ ही मिली है परंतु प्रभु के अनेक गुण इस एक जीभ द्वारा ही गायन किए जा सकते हैं। इसके लिए हमें सतिगुरु की शरण में जाना होता है। फाल्गुन मास में हमको सदैव प्रभु की स्तुति करनी चाहिए । उसको अपनी स्तुति की जरा भी इच्छा नहीं है। यहां गहरी रमज़ है कि प्रभु की स्तुति करना हमारे अपने हित में है । यह हमारा कोई प्रभु के सिर एहसान नहीं है। प्रत्येक पल प्रभु की सच्ची स्तुति में लगाकर ही जीवन अर्थपूर्ण हो सकता है। समस्त मानव जीवन – रूपी फाल्गुन मास प्रभु-स्तुति के अनुकूल है।

जिन जिन नाम धिआइआ तिन के काज सरे ॥
हरि गुरु पूरा आराधिआ दरगह सचि खरे ॥
सरब सुखा निधि चरण हरि भउजलु बिखमु तरे ॥
प्रेम भगति तिन पाईआ बिखिआ नाहि जरे ||
कूड़ गए दुबिधा नसी पूरन सचि भरे ॥
पारब्रहमु प्रभु सेवदे मन अंदर एक धरे ॥
माह दिवस मूरत भले जिस कउ नदरि करे |
नानकु मंगै दरस दानु किरपा करहु हरे ॥१४॥१ ॥ (पन्ना १३६ )

श्री गुरु अरजन देव जी बारह माहा मांझ की इस अंतिम पउड़ी में प्रभु – नाम के महातम और पावन बाणी का मूल प्रयोजन दर्शाते हुए मनुष्य – मात्र को नाम – बाणी द्वारा प्रभु – नाम के साथ जुड़कर अमूल्य मनुष्य-जन्म का मूल उद्देश्य सफल करने का मार्ग बख्शिश करते हैं ।

गुरु जी फरमान करते हैं कि जिस-जिस मनुष्य ने प्रभु नाम का ध्यान किया उसी के ही उद्देश्यपूर्ण कार्य पूरे हुए; जिस-जिस ने पूर्ण गुरु के माध्यम से परमात्मा को याद किया वही रूहानी दरबार में सच्चा व खरा सिद्ध हुआ। सभी सुखों अथवा रूहानी सुखों के खजाने – रूपी हरि – चरणों से जुड़कर भय के कठिन सागर से पार हुआ जा सकता है। नाम से जुड़ने वाले को प्रेम – भक्ति रूपी अमूल्य वस्तु मिल जाती है। वह माया रूपी विष को सहन नहीं करता । लालच रूपी झूठ से वह छूट जाता है। उसकी अनिश्चितता खत्म हो जाती है और वह प्रभु – नाम – रूपी सत्य से भरपूर हो जाता है। वह परमात्मा को सदैव मन-अंतर में टिकाकर रखता है । जिस पर परमात्मा की कृपा-दृष्टि है उसके सभी महीने, दिन, मुहूर्त अच्छे हैं अर्थात् परमात्मा की कृपा ही जीवन की सफलता का आधार है । गुरु जी कथन करते हैं कि हे प्रभु! मुझ पर भी कृपा-दृष्टि करो और मुझे अपने दर्शन – दीदार प्रदान कर दो!