गुरबाणी विचार फलगुणि श्री गुरु नानक देव जी

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February 13, 2025

गुरबाणी विचार

फलगुनि मनि रहसी प्रेमु सुभाइआ ॥
अनदिनु रहसु भइआ आपु गवाइआ ॥
मन मोहु चुकाइआ जा तिसु भाइआ करि किरपा घरि आओ ॥
बहुते वेस करी पिर बाझहु महली लहा न थाओ ॥
हार डोर रस पाट पटंबर पिरि लोड़ी सीगारी ॥
नाक मेलि लई गुरि अपण घरि वरु पाइआ नारी ॥१६॥
बे दस माह रुती थिती वार भले ॥
घड़ी मूरत पल साचे आए सहज मिले ॥
प्रभ मिले पिआरे कारज सारे करता सभ बिधि जाणै ॥
जिन सीगारी तिसहि पिआरी मेलु भइआ रंगु माणै ॥
घरि सेज सुहावी जा पिरि रावी गुरमुखि मसतकि भागो ॥
नानक अहिनिस रावै प्रीतमु हरि वरु थिरु सोहागो ॥१७॥१॥ ( पन्ना १९०९)

पहले पातशाह श्री गुरु नानक देव जी बारह माहा तुखारी की इन पावन पउड़ियों में क्रमश: फागुन मास के ऋतु वर्णन द्वारा मनुष्य मात्र को अहंकार एवं सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ कर दैवी गुणों का संचार करने और मानव जीवन रूपी वर्ष में कुल प्राप्त समय अमूल्य जानकर प्रभु – नाम के चिंतन, मनन और व्यवहार द्वारा जीवन सफल करते हुए प्रभु – मिलन का गुरमति मार्ग बख़्शिश करते हैं।

सतिगुरु जी फरमान करते हैं कि शीत ऋतु के चले जाने के बाद फागुन मास में साधारणतः लोग होली खेलते और खुशियां मनाते हैं, परंतु जिस जीव- स्त्री के मन में फागुन मास में प्यारे प्रियतम परमात्मा का प्यार बसा, वास्तविक रूप में अथव सदीवी रूप में वही (आत्मिक) आनंद को प्राप्त कर सकी, चूंकि प्रभु – प्रियतम को मन में बसाये रखने के लिए उसने अपने आप को अथवा अपने अहं को गंवा दिया।

अहंभाव को गंवाना प्रत्येक जीव के वश की बात नहीं । इस तथ्य को दशति हुए गुरु जी कथन करते हैं कि उसी के मन में सांसारिक मोह-माया का भाव उठ पाया जिस पर प्रभु-मालिक ने स्वयं कृपा – बख्शिश की । अतः जीव- स्त्री की प्रभु – मिलन मानसिक-आत्मिक सर्वोच्च अवस्था प्रभु कृपा के घर में आकर बख़्शिश करते हैं। आत्मा की प्रभु-मिलन की जिज्ञासा का वर्णन करते हुए गुरु जी कथन करते हैं कि मुझ पर प्रभु खुश नहीं इसी लिए मैं साचे महल में स्थान नहीं पा सकी। दूसरी ओर, जब मैंने प्रिय को स्वीकृत रूहानी / नैतिक गुणों का श्रृंगार किया, जब मैंने गुण रूपी रेशमी वस्त्र पहने, जब सच्चे गुरु ने मुझे प्रभु – मिलन का गुरमति मार्गा दिया, तब मैंने अपने हृदय – रूपी घर में ही प्रभु – मिलन को प्राप्त कर लिया । जीव-स्त्री को प्रभु – प्रियतम मिल गया, जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो गया ।

सतिगुरु बारह माहा तुखारी की अंतिम पावन पउड़ी में कथन करते हैं कि जो जीव- स्त्री सतिगुरु से भेंट हो जाने से प्रभु – मिलन के मार्ग की समझ प्राप्त कर लेती है और प्रभु – चिंतन, मनन एवं निर्मल जीवन – व्यवहार करती है उसके लिए दस और दो अर्थात् बारह के बारह महीने ही अच्छे हो गए ! इन बारह महीनों में आने वाली सभी ऋतुएं, तिथियां और दिन सभी अच्छे हो गए। सभी मुहूर्त, सभी घड़ियां और पल सफल हो गए जब सदीवी कायम रहने वाले स्वामी मिल गए । प्रभु-मिलन से समस्त जीवन-कार्य ही निर्मल व रसिक हो जाते हैं । करता पुरख स्वयं जीव – स्त्री को स्वयं से मिलाने की युक्तियां जानता है अर्थात् जीव- स्त्री ने मात्र स्वयं समर्पण करना है, शेष सफलता स्वतः मिलती जाती है। जो गुणों का श्रृंगार करती है वही प्रभु के प्यार की पात्र लगती है। प्रभु – मिलन का अनुभव हो गया तो वह जीवन काल में खुशियां ही लेती है। उसका हृदय रूपी घर प्रभु की सुहावनी सेज बन जाता है, क्योंकि गुरु- उपदेश को वह नहीं भूलती, अपना मुख सदैव गुरु अथवा गुरु-उपदेश की ओर रखती है और वह सौभाग्यशाली माथे वाली होती है । सतिगुरु जी कथन करते हैं कि ऐसी जीव- स्त्री क्या दिन, क्या रात अर्थात् जीवन का कुल मिला समय प्यारे प्रभु मालिक को ही स्मरण करती है, उसको ही अपना पति मानती है, वह सदैव सोहागिन बन जाती है अर्थात् मानव-जीवन का मूल उद्देश्य, रूहानी गुणों का संचार करते हुए गुरु- ज्ञान के प्रकाश में सर्वोच्च रूहानी आनंद की अवस्था को प्राप्त करती है ।