गुरुद्वारा प्रबंध सुधार लहर की श्रृंखला में घटि साका गुरुद्वारा श्री ननकाना साहिब

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February 19, 2025

-डॉ. रूप सिंघ*

श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी ने गुरु-पिता श्री गुरु तेग बहादर साहिब की शहादत को ‘धरम हेत साका’ कहा है, जिससे ‘साका’ शब्द सिक्ख शब्दावली का अटूट हिस्सा बन गया है। साका का अर्थ है, कोई ऐसा कर्म जो इतिहास में प्रसिद्ध रहने लायक हो। विचित्र, अनोखी, अद्वितीय, अजीब घटना को साका कहा जाता है। स्पष्ट है कि यह शब्द भारी दुखद घटना के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

श्री गुरु तेग बहादर साहिब की शहादत के बाद पंजाबियों और खास कर सिक्खों को इस अर्थ- भाव वाले साकों के सम्मुख होना पड़ा, जैसे जलियां वाला बाग का साका, गुरुद्वारा श्री ननकाणा स का साका, गुरुद्वारा श्री पंजा साहिब का साका आदि । अंग्रेज़ शासकों की शह पर महंतशाही के तांडव नाच की दर्दनाक कहानी को साका गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब रूपमान करता है। इन साकों को ढाडी वीर रसी वारों के माध्यम से प्रकट करने के लिए साका काव्य रूप प्रचलित हुआ ।

‘ननकाणा’ ‘नानकिआणा’ से बना है, जिसका अर्थ है नानक आयन– श्री गुरु नानक देव जी का आयन अर्थात् घर। इस सुहावनी धरती का पहला नाम रायपुर, फिर तलवंडी राय भोय और शाश्वत नाम ननकाणा साहिब प्रचलित हुआ । ननकाणा साहिब की धरती पर श्री गुरु नानक साहिब ने अनेक आलौकिक कृत्य किए। श्री गुरु नानक देव जी के इस प्रकाश स्थान पर १६१३ ई में श्री गुरु हरिगोबिंद साहिब के आगमन से यह यादगारी स्थान स्थापित हुआ, जो समय बीतने के साथ गुरुद्वारा जन्म-स्थान श्री गुरु नानक देव जी, ननकाणा साहिब के नाम से विश्व-प्रसिद्ध हुआ । संक्षेप में इसे गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब भी कहा जाता है।

उदासी संप्रदाय के प्रमुख बाबा अलमस्त जी को गुरुद्वारा जन्म-स्थान की सेवा-संभाल श्री गुरु हरिगोबिंद साहिब ने सौंपी थी। इस तरह आरंभ से ही इस पवित्र स्थान का प्रबंध उदासी संप्रदाय के महंत-पुजारी ही करते रहे। सिक्ख राज्य-काल में गुरुद्वारों के नाम भारी मात्रा में लगी जागीर -जायदाद ने महंतों को आलसी, ऐयाश, भ्रष्ट और कुकर्मी बना दिया। सिक्ख राज्य का सूर्य अस्त होते ही महंतों-पुजारियों ने अंग्रेज – भक्त बन कर ऐशप्रस्ती करनी शुरू कर दी। महंत पुजारी गुरुद्वारों की ज़मीन-जायदाद को अपनी निजी पैतृक मलकियत समझने लगे। महंतों- पुजारियों ने गुरुद्वारों को ऐशप्रस्ती के अड्डे बना लिया। जब सिक्खों के घर घोड़ों की काठियों पर थे तब भी गुरुद्वारा प्रबंध साधारणतया महंतों – उदासियों और निरमलों के पास ही था। गुरु घर का प्रबंध उस समय तक ठीक चलता रहा, जब तक महंत आदि सिक्ख जीवन मूल्यों के अनुसार जीवन बसर करते रहे। जब इनका जीवन ” करतूति पसू की मानस जाति” वाला हो गया तो गुरुद्वारा प्रबंध में गिरावट आनी शुरू हो गई। गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब के महंत नारायण दास का शराब पीकर आई संगत की बेइज्ज़ती करना, महिलाओं की इज्जत पर हाथ डालना नित्य का कर्म बन गया था। महंतों के कुकर्मों एवं दुराचारों के दाग को धोने के लिए पवित्र खून की ज़रूरत थी जिसको ननकाणा साहिब के शहीदों ने पूरा किया।

इस समय सिक्ख समाज में सिक्ख जागृति के रूप में सिंघ सभा लहर चल रही थी । जागरूक गुरसिक्खों ने गुरुद्वारा प्रबंध को पारिवारिक प्रबंध से पंथक प्रबंध में लाने के लिए कमरकस्से कर लिए। गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब को महंतों के प्रबंध से आज़ाद कराने के लिए गुरसिक्ख जांबाजों का शांतमयी जत्था फरवरी, १९२१ ई में दर्शनी ड्योढ़ी के रास्ते अंदर दाखिल हुआ, जहां इन नानक- नाम-लेवा गुरसिक्खों का ‘स्वागत’ महंत, उसके गुंडों-बदमाशों ने गोलियों, लाठियों, बर्छियों, तलवारों आदि जान-लेवा हथियारों से किया । गुरु-घर की पवित्रता को कायम रखने की खातिर गुरु के लाल शांतमयी रहकर शहादत प्राप्त कर गए।

साका गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब जब घटित हुआ उस समय कुछ भट्टी मुसलमानों, बाबा करतार सिंघ (बदी), मंगल सिंघ कूका आदि ने भी कुकर्मी महंतों का साथ दिया। महंत नारायण दा और मिस्टर करी डी. सी. तथा मिस्टर किंग कमिशनर लाहौर डिवीज़न की शह पर गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब की पवित्र धरती खून से लाल हो गई । बाबा करतार सिंघ (बेदी) को कुछ समय बाद पंथ के साथ की गद्दारी का एहसास हुआ तो वह श्री अकाल तख्त साहिब पर पेश हुआ, जिस पर उसे अब तक की सबसे सख़्त तनखाह ( सजा ) लगाई गई ।

यह दुखांत साका श्री गुरु नानक देव जी के घर को कपटी महंतों से आज़ाद करवाने गए गुरसिक्खों के साथ घटित हुआ । इससे अधिक दर्दनाक घटना और क्या हो सकती है ! हर सिक्ख के लिए गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब पवित्र धरती है। यहां का महंत नारायण दास गुरु-घर का सबसे बड़ा दोषी साबित हुआ। वह कुकर्मी बन चुका था। धर्म-कर्म उसमें से गायब हो चुका था। गुरुद्वारा साहिबान के प्रबंध को ऐसे ही कपटी महंतों से आज़ाद करवा कर संगती प्रबंध में लाने के लिए गुरसिक्खों ने गुरुद्वारा प्रबंध सुधार लहर आरंभ की, जिसके अंतर्गत सबसे पहले गुरुद्वारा बाबे दी बेर, सिआलकोट अक्तूबर, १९२० ई में पंथक प्रबंध में लिया गया। इसी समय के दौरान सचखंड श्री हरिमंदर साहिब और श्री अकाल तख्त साहिब का प्रबंध भी पंथक हाथों में आया ।

महंत नारायण दास और उसके गुंडों ने गुरुद्वारा जन्म स्थान को शांतमयी सिक्ख सेवकों के खून के साथ लथपथ कर दिया । यह गुरुद्वारा साहिबान की स्वतंत्रता के लिए किया गया सत्याग्रह था । यह जब्र-जुल्म और अत्याचार के विरुद्ध सत्, संतोष, सब्र के धारक होकर, शांतमयी रह कर किया गया विद्रोह, रोष और गुस्सा था। महंत नारायण दास के बदमाशों के जब्र – जुल्म की इंतहा देखो, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की हजूरी में बैठा ग्रंथी सिंघ भी शहीद हो गया और श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पवित्र स्वरूप में भी गोलियां लगी, जिसको ‘शहीदी बीड़’ कहा जाता है। गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब के साके के समय गुरसिक्खों के धैर्य और सब्र की परख हुई। गुरु के लालों ने “इतु मारगि पैरु धरीजै ॥ सिरु दीजै काणि न कीजै ॥” के महावाक्य को सिद्ध कर दिखाया। शहीदों के पवित्र खून का सदका ही अंग्रेज राज्य-काल में स्वतंत्र सिक्ख संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर साहिब अस्तित्व में आई, जिसको सिक्ख पार्लियामेंट होने का मान-सम्मान हासिल है । इस दुखांत साके को शाब्दिक रूप नहीं दिया जा सकता ।

अमृत वेले श्री गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान ( प्रकाश – स्थान ) पर दर्शन-दीदार कर रहे शांतमयी गुरसिक्खों पर जब महंत और उसके गुंडों ने गोलियों की बारिश की होगी, कितनी करुणामयी एवं दुखदायी घड़ी होगी, केवल कल्पना ही की जा सकती है। गुरु नानक – नाम – लेवा गुरसिक्खों ने अपने पवित्र खून से महंत के पाप से दूषित हुई धरती को धोकर पवित्र कर दिया । कोमल – दिल कवि चरन सिंघ सफरी के बोल हैं :

सड़दे जंड ने पुच्छिआ भट्ठ कोलों, सड़न वाला की सड़ के मर गिआ ए ?
भखदे भट्ठ ने अग्गों जवाब दित्ता, उह तां मैनूं वी ठंडिआ कर गिआ ए।…

कितने सब्र, सहज व शीतलता के धारक होंगे गुरु-घर के परवाने – गुरसिक्ख, जिनको जंड के साथ जीवित बांध कर भट्ठी में फेंक कर जलाया गया, मगर किसी ने उफ तक नहीं की । गुरुद्वारा जन्म-स्थान के नज़दीक स्थित शहीदी कुआं और जंड का पेड़ शहीदों की शहादत की दास्तां बयान करता है। जंड के पेड़ की संभाल करनी ज़रूरी है।

अप्रैल, १९२१ ई में महंत नारायण दास और उसके चाटुकारों पर मुकद्दमा चलना शुरू हुआ । १२ अक्तूबर, १९२१ ई को महंत नारायण दास तथा उसके सात साथियों को मौत की सज़ा, आठ साथियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई, लेकिन हाईकोर्ट ने महंत की मौत की सज़ा उम्र-कैद में तबदील कर दी। गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब की ऐतिहासिक इमारत, विशाल दर्शनी ड्योढ़ी और खुला आंगन समय-स्थान से स्वतंत्र श्री गुरु नानक साहिब की विचारधारा को आज भी रूपमान करते हैं। यह साका सिक्खी-आस्था, सब्र साहस और शहादत को प्रत्यक्ष रूप से रूपमान करता है। ज़रूरत है, इससे प्रेरणा लेकर सिक्खी जीवन – जाच में सत्य – संतोष के धारक होकर समय के साथ चलने की ।

गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब के शहीदों की याद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने शहीद सिक्ख मिशनरी कॉलेज, श्री अमृतसर साहिब में स्थापित किया और शहीदी जीवन पुस्तक विशेष रूप से लिखवायी, जिसमें ८६ शहीदों का जीवन-वृत्तांत वर्णन किया गया है।

देश-विभाजन के समय तक गुरुद्वारा श्री ननकाणा साहिब का प्रबंध शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी करती रही है, परंतु देश के बंटवारे में जहां सिक्खों का भारी जानी और माली नुकसान हुआ, वहीं सिक्खों की जिंद-जान से प्यारे गुरुद्वारों – गुरुधामों से भी सिक्ख बिछुड़ गए। इस वियोग के नासूर को भरने के लिए हर सिक्ख सुबह-शाम इन गुरुद्वारों – गुरुधामों के दर्शन – दीदार के लिए प्रार्थना करता है ।

जिस सुहावनी धरती पर नानक निर्मल पंथ का आगाज़ हुआ उस धरती के जर्रे जर्रे के साथ हर नानक-नाम लेवा सिक्ख की मोहब्बत होनी लाज़िमी है। इसी पावन धरती से चलकर श्री गुरु नानक देव जी ने “सचु सुणाइसी सच की बेला “ का संदेश समूची मानवता को दिया। श्री गुरु नानक साहिब ने जब्र-जुल्म के विरुद्ध बुलंद आवाज़ में समय के बादशाह बाबर को अत्याचारी कह कर समय- स्थान एवं परिस्थितियों से प्रभावित न होते हुए उचित समय पर सत्य के सिद्धांत लिखे, सत्य के प्रशंसा भरे शब्द गाए, सत्य को जीवन में धारण करके दिखाया। अफसोस, आज हम श्री गुरु नानक देव जी के सिक्ख कहलवाने वाले जीवन में सत्य को पूर्ण रूप से अपनाने से कन्नी कतरा रहे हैं।