भारतीय सेना-सिक्ख रेजिमेंट

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April 03, 2025
स. जसविंदर सिंघ खांबरा

 

सेवा मुक्त मेजर जनरल मुकशी खान ने अपनी पुस्तक, ‘क्राईस ऑफ लीडरशिप’ में लिखा है कि भारतीय सेना का एक अभिन्न अंग होते हुए भी भारतीय सेना सिक्खों के शौर्य से अनजान ही रही क्योंकि घर की मुर्गी दाल बराबर ।

 

भारतीय सेना को सिक्खों की वीरता से कभी सीधा वास्ता नहीं पड़ा था दुश्मनों का पड़ा था और उन्होंने इनकी शौर्य गाथाएं भी लिखी । स्वयं पाकिस्तानी सेना के सेवा मुक्त मेजर जनरल मुकीश ख़ान ने अपनी पुस्तक, क्राईस ऑफ लीडरशिप में पृष्ठ २५० पर, वे सिक्खों के साथ हुई अपनी १९७१ ई. की मुठभेड़ पर लिखते हैं कि हमारी पराजय का मुख्य कारण था, हमारा सिक्खों के आमने- सामने युद्ध करना। हम उनके आगे कुछ भी करने में असमर्थ थे। सिक्ख बहुत बहादुर और उनमें शहीद होने का एक विशेष जज़्बा व एक महत्त्वाकांक्षा है । वे अत्यंत बहादुरी से लड़ते हैं और उनमें सामर्थ्य है कि अपने से कई गुना संख्या में अधिक सेना को भी वे परास्त कर सकते हैं ।

 

वे आगे लिखते हैं कि ३ दिसंबर, १९७१ ई को हमें अपनी पूर्ण क्षमता और दिलेरी से अपने इन्फैंट्री ब्रिगेड के साथ भारतीय सेना पर हुसैनीवाला के समीप आक्रमण किया। हमारी इस ब्रिगेड में पाकिस्तान की लड़ाकू ब्लूच रेजिमेंट और पंजाब रेजिमेंट भी थी और कुछ ही क्षणों में हमने भारतीय सेना के पांव उखाड़ दिए और उन्हें काफी पीछे हटने के लिए मज़बूर कर दिया। उनकी महत्त्वपूर्ण चौकियां अब हमारे कब्जे में थी। भारतीय सेना बड़ी तेजी से पीछे हट रही थी और पाकिस्तानी सेना अत्यंत उत्साह के साथ बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थी। हमारी सेना अब कोसरे- हिंद पोस्ट के समीप पहुंच चुकी थी । भारतीय सेना की एक छोटी-सी टुकड़ी वहां उस पोस्ट की सुरक्षा हेतु तैनात थी और इस टुकड़ी के सैनिक सिक्ख रेजिमेंट से सम्बंधित थे। एक छोटी-सी गिनती वाली सिक्ख रेजिमेंट ने लोहे की दीवार बन हमारा रास्ता अवरूद्ध कर दिया। वे पूरी शक्ति से सिक्ख जैकारा बोले सो निहाल, सति श्री अकाल के नारों से आकाश गुंजा रहे थे। उन्होंने हम पर भूखे शेरों की तरह और बाज़ की तेजी से आक्रमण किया। ये सभी सैनिक सिक्ख थे। यहां एक आमने-सामने की, आर-पार की, सैनिक से सैनिक की लड़ाई हुई। आकाश या अली और “बोले सो निहाल” के गगन भेदी नारों से गुंजायमान हो उठा। इस आर-पार की लड़ाई में भी सिक्ख सैनिक इतनी बेमिसाल बहादुरी से लड़े कि हमारी सारी महत्त्वाकांक्षाएं, हमारी सभी आशाएं धूमिल हो उठी, हमारे सभी सपने चकना चूर हो गए। इस जंग में ब्लूच रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट कर्नल गुलाब हुसैन शहादत को प्राप्त हुए थे। उनके साथ मेजर मोहम्मद जईफ और कप्तान आरिफ अलीम भी अल्लाह को प्यारे हुए थे। उन अन्य पाकिस्तानी सैनिकों की गिनती कर पाना मुश्किल था जो इस जंग में शहीद हुए। हम अश्चर्यचकित थे मुट्ठी भर सिक्खों के साहस और उनकी इस बेमिसाल बहादुरी पर ! जब हमने इस तीन मंज़िला कंक्रीट की बनी पोस्ट पर कब्जा किया तो सिक्ख इसी की छत पर चले गये, जमकर हमारा विरोध करते रहे, हम से लोहा लेते रहे । सारी रात वे हम पर फायरिंग करते रहे और सारी रात वे अपने उद्घोष, अपने जैकारे . “बोले सो निहाल, सति श्री अकाल ।” से अकाश गुंजायमान करते रहे। इन सिक्ख सैनिकों ने अपना प्रतिरोध अगले दिन तक जारी रखा, जब तक पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने इनको चारों और से नहीं घेर लिया और इस सुरक्षा पोस्ट को गोलों से उड़ा डाला। यह सभी मुट्ठी भर सिक्ख सैनिक इस जंग में हमारा मुकाबला करते हुए शहीद हो गये परंतु तब अन्य सिक्ख सैनिक ने तोपखाने की मदद से हमारे टैंकों को नष्ट कर दिया। बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए, इन सिक्ख सैनिकों ने मोर्चों में अपनी बढ़त कायम रखी और इस तरह हमारी सेना को हार का मुंह देखना पड़ा . अफसोस! इन मुट्ठी भर सिक्ख सैनिकों ने हमारे इस महान विजय अभियान को पराजय में बदल डाला, हमारे विश्वास और हौसले को चकना चूर करके रख डाला। ऐसा ही हमारे साथ ढाका–बंगला देश में भी हुआ था । जस्सूर की लड़ाई में सिक्खों ने पाकिस्तानी सेना से इतनी बहादुरी से प्रतिरोध किया कि हमारी रीढ़ तोड़कर रख दी, हमारे पांव उखाड़ दिए। यह हमारी हार का सबसे मुख्य और महत्त्वपूर्ण कारण था । सिक्खों का शहादत के प्रति प्यार, और सुरक्षा के लिए मौत का उपहास तथा देश के लिए सम्मान, उनकी विजय का एकमात्र कारण बने ।