स. बघेल सिंघ करोड़ासिंघीया

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March 17, 2025

-डॉ चमकौर सिंघ *

सरदार बघेल सिंघ करोड़ासिंघीया मिसल के शक्तिशाली, फुर्तीले एवं सिरमौर सरदार हुए हैं, जिन्होंने सिक्खों की राजसी ताकत को गंग – दुआब (यू. पी.) तक बढ़ाया तथा दिल्ली के तख़्त को हिलाकर रख दिया। ज़िला श्री अमृतसर के गांव झबाल के ये शूरवीर सरदार करोड़ा सिंघ के बाद १७६१ ई में मिसल करोड़ासिंघीया के जत्थेदार बने। इस मिसल को ‘मिसल पैजगढ़िया’ भी कहा जाता था, क्योंकि सरदार करोड़ा सिंघ जिला गुरदासपुर के गांव पैजगढ़ के रहने वाले थे। जब दल खालसा के दो जत्थे — बुड्ढा दल एवं तरुणा दल बने तो यह मिसल बुड्ढा दल में शामिल हुई।

अब्दाली की मराठों के विरुद्ध जंग में व्यस्त हो जाने के बाद सिक्ख सरदारों ने अलग–अलग इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया । होशियारपुर ज़िले का बड़ा हिस्सा अथवा जलंधर – दुआ का एक-चौथाई हिस्सा स. बघेल सिंघ के अधिकार में आ गया। होशियारपुर से १२ किलोमीटर पश्चिम की तरफ हरियाणा को उन्होंने अपना सदर मुकाम (मुख्यालय) बना लिया। जनवरी, १७६४ ई में जैन खां को मारकर सिक्खों ने जब सरहिंद का राज्य बांटा तो स. बघेल सिंघ ने छलौदी (करनाल से ३० किलोमीटर उत्तर की तरफ), जमीतगढ़, खुरदीन तथा किनौड़ी पर कब्ज़ा करके करोड़ासिंघीया मिसल के प्रभाव – क्षेत्र में काफी बढ़ोतरी की तथा छलौदी को अपनी राजधानी बना लिया ।

यह वो समय था जब सिक्खों का दबदबा दूर-दूर तक चलता था । मुगल साम्राज्य जरज़रा हो चुका था। सिरदार कपूर सिंघ के अनुसार, राजपूत, जाट, रुहेले तथा अवध का नवाब खालसे के दलों का नाम सुनकर कांपते थे मरहट्टे ( मराठे ) भी सिक्खों की सरदारी मानने के लिए तैयार थे ताकि सिक्ख उनकी अंग्रेजों के खिलाफ सहायता करें। अंग्रेज उस समय अभी नए-नए ही देश के राजनीतिक मैदान में उतरे थे । स. बघेल सिंघ ने इस सारे हालात को भांप लिया था। मुगल हकूमत की खसता हालत से भी वे भली-भांति वाकिफ थे । इतिहासकार डॉ. हरी राम गुप्ता के अनुसार उनका निशाना मुगल बादशाह शाहआलम (दूसरा) के नाम तले मुगल सलतनत पर सिक्ख राज्य को स्थापित करना था । बादशाह उनको सलतनत का शासनपाल (Regent) नियुक्त करने के मूढ़ में था । उसने यह मौका संभाला होता तो गंग-दुआब की तरह दक्षिण में मुगल सराय, बुंदेलखंड, राजस्थान तथा सिंध तक सिक्ख राज्य होना था। वे सारे उत्तरी भारत में सिक्खों की राजसी ताकत को स्थापित करने की सामर्थ्य एवं योग्यता रखते थे । सिक्ख सरदारों की आपसी रंजिश ने उनकी इस उत्साही योजना को सिरे न चढ़ने दिया । फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि अटक दरिया से लेकर रुहेलखंड (यू. पी.) तक सिक्खों की प्रभावशाली राजसी ताकत बन चुकी थी ।

यमुना के पार सिक्खों ने पहला हमला बाबा बंदा सिंघ बहादर के समय १७१० ई. में किया था। दूसरा हमला सरहिंद पर कब्ज़ा करने के पश्चात स. जस्सा सिंघ आहलूवालिया त स. बघेल सिंघ की अगुआई में फरवरी, १७६४ ई में किया। इसके बाद यमुना पार सिक्खों के हमले आम हो गए। १७६५ ई. में जब बुड्ढा दल ने नजीबुदौला के विरुद्ध राजा जवाहर मल्ल की मदद की तो स. बघेल सिंघ भी खालसा फौज में शामिल थे। अब्दाली के आठवें हमले के समय भी उन्होंने बड़ी बहादुरी दिखायी। खासकर बटाला की लड़ाई में स. बघेल सिंघ ने अब्दाली के डेरे में खूब भगदड़ मचाई। मई, १७६७ ई में सिक्खों ने फिर यमुना के पार हमला किया। अब्दाली उस समय पंजाब में ही था । उसने अपने जरनैल जहान खां को नजीबुदौला की मदद हेतु भेजा । शामली एवं कोराना के मध्य नजीबुदौला तथा जहान खां ने सिक्खों पर हमला किया । बड़ी सख़्त लड़ाई हुई, जिसमें स. बघेल सिंघ जख़्मी हो गये ।

१७७३ ई में जलालाबाद के हाकिम ने जब्रदस्ती एक ब्राह्मण परिवार की लड़की को उठा लिया। जब सिक्ख दलों ने स. करम सिंघ शहीद के नेतृत्व में उसको सोधा तो स. बघेल सिंघ भी साथ थे। १७७५ ई में सिक्ख दल करनाल के पास इकट्ठा हुए, जहां उन्होंने स. राए सिंघ, स. तारा सिंघ घेबा (कंग) तथा स. बघेल सिंघ की अगुआई में अपने आप को तीन हिस्सों में बांट लिया । २२ अप्रैल, १७७५ ई को इन तीनों जत्थों ने कुंजपुरे के पास, बेगी घाट के रास्ते यमुना पार हमला बोल दिया । लखनौती, गंगोह, अंबेहटा, ननौता, देवबंध आसानी से ही उनके हाथों में आ गए। वहां से वे रुहेलखंड की राजधानी गौसगढ़ पर जा हमलावर हुए। यहां के हाकिम ज़ाबता खां ने पचास हज़ार का नज़राना देकर सिक्खों के साथ संधि कर ली। यहां से सिक्खों ने जाबता खां को साथ लेकर दिल्ली के पहाड़गंज तथा जय सिंह पुरा इलाके के जालिमों को सोधा तथा वापिस पंजाब आ गए।

१७७६ ई में जाबता खां द्वारा मदद हेतु विनती करने पर स. बघेल सिंघ तथा अन्य सरदारों की अगुआई में सिक्ख दलों ने सहारनपुर के फौजदार अबुल कासिम, जो कि मुगल बादशाह के वज़ीर अब्दुल अहद का भाई था, पर धावा बोल दिया । ११ मार्च, १७७६ ई को मुज्जफरनगर के पास अमीरनगर के स्थान पर लड़ाई हुई। अबुल कासिम मारा गया तथा शाही फौज भाग गयी ।
१७७९ ई में राजा अमर सिंघ पटियाला ने स. बघेल सिंघ के कुछ गांवों, जैसे लालडू, भुंजनी, मुल्लांपुर आदि पर कब्ज़ा कर लिया । स. बघेल सिंघ ने दूसरे सरदारों को साथ लेकर पटियाला पर चढ़ाई कर दी। घुड़ाम के पास राजा अमर सिंघ की फौज से लड़ाई हो गयी। राजा अमर सिंघ ने हालात देखकर अपने वकील चैन सिंघ के जरिए संधि कर ली तथा अपने सुपुत्र साहिब सिंघ को स बघेल सिंघ से अमृत छकाया ।

जनवरी, १७८३ ई में बुझ्छा दल ने गंगा नदी के किनारे अनूप शहर पर धावा बोला। अवध का नवाब खतरा समझकर अंग्रेज फौज की मदद से गंगा नदी के दूसरे किनारे पर जा खड़ा हुआ सिक्ख अलीगढ़, बुलंद शहर, फरुखाबाद के इलाके से दिल्ली की तरफ चल पड़े। स. जस्सा सिंघ आहलूवालिया तथा स. बघेल सिंघ की जत्थेदारी में ६०,००० की संख्या में बुड्ढा दल ८ मार्च, १७८३ ई को दिल्ली पहुंचा तथा मलकागंज, सब्जी मंडी, मुगलपुरा पर कब्ज़ा कर लिया। शाही फौज हार गयी तथा मुगल बादशाह शाहआलम (दूसरा) ने सिक्खों से समझौता कर लिया। समझौते की मुख्य शर्तें निम्नांकित थीं :-
१. दल खालसा को तीन लाख रुपये नज़राने के रूप में दिए जाएंगे।
२. शहर की कोतवाली चुंगी का ३७५ प्रतिशत हिस्सा ( रुपए में से छ: आने) वसूल करने का अधिकार सिक्खों को होगा।
३. स. बघेल सिंघ गुरुद्वारा साहिबान के निर्माण तक ४,००० सिक्खों के जत्थे सहित दिल्ली में रहेगा।
होगी ।
४. दिल्ली में कानून एवं व्यवस्था कायम रखने के जिम्मेदारी स. बघेल सिंघ की गुरुधामों के निर्माण के लिए स. बघेल सिंघ चार हज़ार सिंघों सहित दिल्ली रहे तथा अन्य सिंघ वापिस आ गए। स बघेल सिंघ ने सब्ज़ी मंडी, तीस हज़ारी इलाके को छावनी बना लिया। जांच-पड़ताल द्वारा निशानदेही करके उन्होंने सीसगंज, रकाबगंज, बंगला साहिब मजनूं टिल्ला आदि गुरुद्वारों का निर्माण करवाया। सारे गुरुद्वारों के निर्माण को आठ महीने का समय लगा तथा दिसंबर, १७८३ ई के शुरू में स बघेल सिंघ ने दिल्ली छोड़ दी।

मुगल बादशाह शाहआलम (दूसरा) के पास जब कोई ताकतवर जरनैल न रहा तो उसने दिसंबर, १७८४ ई को दिल्ली सलतनत की समस्त जिम्मेदारी महादजी सिंधिया को सौंपकर अपना शासनपाल नियुक्त कर लिया। सिंधिया गंग-दुआब तथा दिल्ली के क्षेत्र पर सिक्खों की मुहिमों को रोकना चाहता था। इस मंतव्य के लिए उसने समझौता करने का प्रयास भी किया।

जनवरी, १७८५ ई में स बघेल सिंघ ने गंगा के पार चंदौसी पर हमला किया। देश से लूटा हुआ लाखों रुपए का माल उसके हाथ लगा। यहां से वह गौसगढ़ की तरफ चल पड़ा। फरवरी, १७८५ ई तक दिल्ली पर अंबाजी मरहट्टे ने कब्ज़ा कर लिया। स. बघेल सिंघ के साथ उसने दोस्ती का अहदनामा कर लिया। इस अहदनामे की मुख्य बात यह भी कि दिल्ली हकूमत सिक्खों को दस लाख वार्षिक नजराना दिया करेगी।

१७९८ ई में जार्ज थामस ने जींद पर हमला किया तो स. बघेल सिंघ ने राजा जींद की मदद की। वे पंजाब के इलाकों के बारे में हुए झगड़ों में भी हिस्सा लेते रहे। १८०२ ई में स. बघेल सिंघ अकाल चलाना कर गये।

सहायक पुस्तकें :
& Dr. Hari Ram Gupta, History of the Sikhs, Vol. IV, 1995, Munshiram Manoharlal Publishers Ltd., 54, Rani Jhansi Road, New Delhi-55.
२. स सोहन सिंघ सीतल, सिक्स मिसलों से सरदार घरापे, पांचवी बार १९९३, लाहौर बुक शॉप, लुधियाना।
३. सिरदार कपूर सिंघ, बहु विसतार दूसरी बार १९७०, लाहौर बुक शॉप,लुधियाना।