बच्चों को सिखाएं सिक्ख मार्शल आर्ट गतका

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January 01, 2025

-स. गुरप्रीत सिंघ

आज की जीवन-शैली में जहाँ हम गलत जीवन- जाच के कारण बीमारियों से पीड़ित हैं, वहीं हमारे बच्चे भी बीमारियाँ से अछूते नहीं रहे। बच्चों में भी बढ़ती बीमारियाँ बड़ी चिंता का विषय बनी हुई हैं। बीमारियाँ शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हैं। आश्चर्य की बात है कि मानसिक तनाव का शिकार आजकल बच्चे भी हो रहे हैं, जिसके बारे में कभी सोचा ही नहीं था। बच्चों में बढ़ता मोटापा भी माँ-बाप के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि बहुत सी बीमारियों की जड़ मोटापा ही है। आज के समय में बच्चे इलेक्ट्रॉनिक यंत्र, जैसे टेलीविजन, मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि पर अपना ज्यादातर समय बिता रहे हैं।

 

बच्चों का खेलना भी इन्हीं यंत्रों के माध्यम से प्रफुल्लित हो रहा है। ये इलेक्ट्रॉनिक यंत्र रेडिएशन ( अदृश्य घातक विद्युत किरणें ) पैदा करते हैं। रेडिएशन के अलावा इन यंत्रों के माध्मय से बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कई नकारात्मक प्रभाव किसी से छिपे हुए नहीं हैं। शहरों की तो बात छोड़ों, अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी खेल के मैदान नज़र नहीं आते। जहाँ पहले बच्चे खुले मैदानों में घंटों तक खेलते थे, वहीं आजकल इसकी जगह मोबाइल, कंप्यूटर वाले बंद कमरों ने ले ली है। इन विद्युत यंत्रों में ज्यादातर बच्चे वीडियो गेम खेलना ही पसंद करते हैं। इन गेमों की कैटगरी में वे लड़ाई वाली वीडियो गेम ज्यादा रुचि के साथ खेलते हैं। बचपन की आयु में बच्चे और नौजवान फुर्तीले और ऊर्जा ( वठ्ठद्रह 4 ) से भरे होते हैं। कुछ नया सीखने और करने की लालसा के कारण उनका ध्यान स्वाभाविक ही मार्शल आर्ट्स की तरफ ज्यादा आकर्षित होता है। देखा गया है। कि लड़ाई वाली फ़िल्में और वीडियो गेम आजकल की नौजवान पीढ़ी बड़े उत्साह से देखना व खेलना पसंद करती है तथा उसी की ही नकल करती है। इस प्रसंग में जो कुछ भी आजकल के नौजवान बच्चे करते हैं, इसके गलत प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। नौजवान बच्चे जिद्दी, झगड़ालू, मनमर्जी के मालिक, गुस्सेखोर, पराजय को बरदाश्त न करने वाले, सहनशीलता की कमी, नैतिकता की कमी, विजय के लिए लगातार संघर्ष करने की कमी और जिंदगी के उतार-चढ़ाव में छोटी-छोटी बात पर आत्म हत्या करने तक भी चले जाते हैं। कहने से तात्पर्य ऐसे अवगुण भी इस इलेक्ट्रॉनिक मीडिए और वीडियो गेम की ही देन हैं, जो कि मानसिक तनाव से उत्पन्न गलत आदतें हैं। उपरोक्त सभी गलत आदतों, समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए माता-पिता को बच्चों के स्वभाव और रुचि के मुताबिक बहुपक्षीय अनुकूलता ( स्त्रहृट्टा) के लिए बच्चों को मार्शल आर्ट्स की तरफ प्रेरित करना चाहिए।

 

सिक्ख मार्शल आर्ट ‘गतका’ एक अच्छा विकल्प है : मार्शल आर्ट्स के अभ्यास से जहाँ बच्चे का स्वास्थ्य ठीक रहता है, वहीं उसके अंदर नैतिक गुणों का विकास भी होता है। ‘गतका’ जहाँ तंदुरुस्ती का साधन है, वहीं इस खेल को खेलते हुए बच्चे के अंदर अनुशासन और दूसरों का सम्मान करना आता है। गतका सीख कर वह आत्म रक्षा और मुश्किल हालात में ख़ुद को बचा सकने (स्द्रद्यद्ध उद्द्र) के योग्य होता है। इससे दूसरों के साथ सहयोग और आत्मनियंत्रण (स्वद्यद्ध ष्टभठ्ठद्य) की कला उसके व्यक्तित्व में निखार लाती है। इस प्रकार उसका संपूर्ण विकास होता है। गतका, वास्तव में बाणी और बाणे की कला है।

 

गतके का खिलाड़ी इस कला की वजह से गुरु-घर से ऊँचे आचरण का धारक बन विशुद्ध विचार और गुरबाणी की जन्म-घुट्टी लेता है। सेवा, सिमरन और जुल्म के विरुद्ध डटना, निडर स्वभाव, दीन की रक्षा जैसे बड़े गुण उसके अंदर सहजता से आ जाते हैं। सिक्ख शस्त्र-विद्या मार्शल आर्ट गतका की वजह से उसे गुरु-घर से शारीरिक तंदुरुस्ती, फुर्ती और नाम सिमरन, गुरबाणी की रहमत मिलती है। गतके द्वारा बच्चों को अपने सभ्याचार, मातृ-भाषा, गुरमुखी के साथ जुड़ने का अवसर मिलता है, क्योंकि गतका सिखाने के लिए जो प्रशिक्षक या उस्ताद हैं, वे भी बाणी- बाणे, मातृ-भाषा पंजाबी तथा अपने सभ्याचार के साथ जुड़े होते हैं। इसके माध्यम से नौजवान नशे की भयानक और घातक लत से भी बचता है। गतका हमेशा चढ़दी कला (उत्साहपूर्वक) रहना सिखाता है। गतके के खिलाड़ी में एक बड़ा गुण यह है कि चाहे किसी भी तरह के हालात हों, उनके विरुद्ध संघर्षरत् रहना और विजय प्राप्त करना गतकेबाज़ के प्रण में होता है। गुरबाणी के फरमान के अनुसार – “भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन’ जैसे गुणों का गतकाबाज़ धारक बन जाता है। गतकाबाज़ अखाड़े में उस्ताद का, घर में माता-पिता का और गुरु-घर में गुरु का आज्ञाकारी बन जाता है। इस प्रकार उसका संपूर्ण विकास होता है और ऐसे संपूर्णता वाले गुण किसी अन्य मार्शल आर्ट में से नहीं मिल सकते, जोकि गतका खिलाड़ी में स्वाभाविक ही आ जाते हैं।

 

गतके में बच्चों की रुचि कैसे पैदा की जाये? यह एक अहम सवाल है कि बच्चा सिक्ख मार्शल आर्ट ‘गतका’ क्यों सीखना चाहता है? क्या उसकी गतका सीखने में रुचि है? क्या उसे गतका खेलना या देखना अच्छा लगता है? गतका वह दूसरों के साथ अपने मुकाबले के लिए या आत्म-रक्षा के लिए के लिए सीखना चाहता है? क्या किसी अन्य को गतका खेलते हुए देख कर उसके मन में उमंग उत्पन्न होती है? क्या वह भी शस्त्र विद्या सिक्ख मार्शल आर्ट में निपुण होकर श्रेष्ठ गतकाबाज बनना चाहता है? उसे इन बातों के प्रति स्पष्ट होना चाहिए। गतका प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षण – दाता के सिखाने के ढंग और बच्चे के सीखने के सामर्थ्य पर निर्भर करती है कि वह कितनी जल्दी और कितना बढ़िया गतके का खिलाड़ी बन सकता है। जिस स्कूल या अकादमी या अखाड़े में उसे दाखिल करवाना हो, माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को साथ लेकर उस अकादमी या अखाड़े में जाकर वहां की कम से कम तीन क्लास अवश्य देखें। ध्यान देने वाली बात है कि क्लास में बच्चों की संख्या ज्यादा भी न हो, इस बात का विशेष ध्यान रखें ताकि टीचर, उस्ताद या गतका इंस्ट्रक्टर उसकी तरफ बेहतर ध्यान दे सके। इससे बच्चा प्रशिक्षण के दौरान किसी तरह की चोट आदि से बचा रहेगा। उस्ताद या इंस्ट्रक्टर का ध्यान उन बच्चों या विद्यार्थियों की तरफ रहने से वे बढ़िया ढंग से तैयारी कर सकते हैं। यह भी देखें कि बच्चे की रुचि किस खेल की तरफ ज्यादा है। गत में कई प्रकार के शस्त्र होते हैं। उनमें से बच्चे की रुचि का पता किया जा सकता है। कई बच्चों या नौजवानों की रुचि स्व-प्रदर्शन की तरफ ज्यादा होती है और वे अकेले चलाने वाले (द्वद्वत्रधा भट्ट) शस्त्र ( जिसमें दूसरे खिलाड़ी की जरूरत नहीं पड़ती ) चलाना ज्यादा पसंद करते हैं। दूसरी किस्म के वे शस्त्र होते हैं, जिनमें साथी खिलाड़ी की या दूसरे खिलाड़ी की ज़रूरत रहती है और दोनों मिल कर आपस में प्रेक्टिस करते हैं या लड़ाई (स्त्रद्वद्दद्धह) करते हैं। इस दौरान हमला करना और अपना बचाव करना सिखाया जाता है। इस द्वंद्व युद्ध कला में एक खिलाड़ी अपने शस्त्र द्वारा दूसरे खिलाड़ी पर बल का प्रयोग करते हुए वार करता है और दूसरा खिलाड़ी उसी तकनीक से वार रोक कर वापसी जवाब में अपने शस्त्र के साथ बल का प्रयोग करते हुए जवाबी वार करता है। इस तरह के खेल को मुकाबला या (स्त्रद्वद्दद्धह वा द्रह) कहा जाता है।

 

गतके में चोट लगने का डर कितना कु है? यह जो गतके का मुकाबला फ्री लाठी या लाठी के साथ होता है, जिसे (स्त्रद्वद्दद्धह्न श्वाद्रठ्ठह्ल) कहा जाता है, एक-दूसरे को पीटने के लिए नहीं होता और न ही अपने सामने के प्रतिद्वंद्वी को चोट पहुंचाने के लिए अथवा जखमी करने के लिए होता है। इस मुकाबले के लिए नियम होते हैं, जिसके अनुसार लाठी के साथ सामने वाले खिलाड़ी को मात्र छूना होता है, जिसका मकसद चोट पहुंचाना नहीं, आईट लेना होता है। जिस खिलाड़ी के ज़्यादा पुआइंट होते हैं उसे विजेता करार दिया जाता है। यदि कोई खिलाड़ी खेल नियमों का उल्लंघन करता है, जैसे कि तेज़ गुस्से के साथ लाठी मारता है या वास्तव में लड़ने वाली स्थिति पैदा करता है, चोट पहुंचाने की कोशिश करता है तो उसे फाउल दिया जाता है। ज्यादा आक्रामक और नियमों से बाहर होकर खेलने पर गलत खेल (मह सद्वद्दद्धह) तकनीक करार देकर उसे मुकाबले से बाहर कर दिया जाता है।

 

गतका खेल- मुकाबलों के दौरान पूरे बचाव और रक्षा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बचाव उपकरण का प्रयोग भी किया जाता है। इस प्रकार गतका खेलते समय चोट लगने का डर नहीं रहता। इस मामले में बेफिक्र हो जाना चाहिए। माता-पिता यह सोचें कि बच्चा जो चुन रहा है, वह उसके लिए सही है। इसके लिए इंस्ट्रक्टर, टीचर या उस्ताद के साथ परामर्श कर लेना चाहिए। उस्ताद की उचित देख-रेख में सही दिशा-निर्देशानुसार, एक ढंग से क्रमवार प्रशिक्षण लेने से गतका खेलने में चोट आदि नहीं पहुंचती। कई माता-पिता के मन में इस बात का भय होता है कि गतका खेलते हुए बच्चा कहीं अपना नुकसान न करवा ले या उसे कहीं चोट आदि न लग जाये। माता-पिता के लिए एक हद तक ऐसा सोचना और उनका डरना जायज भी है, परंतु सिलसिलेवार तजुर्बेकार उस्ताद की निगरानी में प्रशिक्षण लेते हुए ऐसी नौबत कभी नहीं आती। बढ़िया ढंग से अपना बचाव पक्ष मजबूत रखते हुए गतका-खेल में चोट नहीं लगती। बाकी प्रत्येक खेल में खेलते हुए खेल के दौरान कभी कोई छोटी-मोटी चोट लग भी जाये तो यह एक आम बात है। दौड़ते हुए भी कोई गिर सकता है, क्रिकेट या फुटबाल खेलते कोई गेंद आदि आकर लग सकती है। बस, इतना ही डर गतका खेलते समय रहता है। जब खिलाड़ी लगातार प्रेक्टिस कर किसी एक खेल या शस्त्र विद्या में निपुणता हासिल कर लेता है तो यह डर भी ख़त्म हो जाता है।

 

स्कूल, अकादमी या अखाड़े की चयन: विद्यार्थी के लिए या अपने बच्चे के लिए मार्शल आर्ट गतके की क्लास में भेजने से पहले उसके लिए सही स्कूल, अखाड़ा-अकादमी आदि का चयन करना महत्वपूर्ण होता है। बच्चे को गतके की जिस अकादमी में दाखिला करवाना है, उसकी पृष्ठभूमि के बारे में अवश्य पता कर लेना चाहिए अर्थात् प्रशिक्षण संस्था कब से स्थापित है? कितनी पुरानी है? सिखाने वाला कब से प्रशिक्षण दे रहा है? उसका तजुर्बा कितना है? क्या संचालक के पास किसी मान्यता प्राप्त संस्था की मान्यता है ? डिग्री- डिप्लोमा आदि है या नहीं? उस संस्था से प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षार्थी किस स्तर तक खेल कर आए हैं? कहीं संचालक या प्रशिक्षण देने वाला किसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल तो नहीं है? यदि शिक्षार्थी लड़की है तो स्वाभाविक ही देखना बनता है कि क्या उस अखाड़े में और लड़कियाँ भी आ रही हैं या नहीं? इसके अलावा संस्था के आस-पास रहते लोगों से और वहाँ से प्रशिक्षण ले चुके बच्चों से या उनके माता-पिता से भी संस्था के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। यह भी ध्यान देना बनता है कि गतका क्लास, अकादमी या अखाड़े का माहौल कैसा है। प्रशिक्षण ले रहे बच्चों की आयु और प्रशिक्षण देने वाले की पृष्ठभूमि के विषय में पूरी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। इस तरह की जानकारी तसल्ली के साथ-साथ यह विश्वास भी दिलाती है कि हमारा बच्चा सही जगह पर जा रहा है। ध्यान देने योग्य है कि यह खेल बहुत सस्ता और सुविधाजनक है, इसलिए गतके की प्रेक्टिस करते हुए बहुत छोटे ग्राउंड और बहुत सस्ते शस्त्र की जरूरत होती है। इसे किसी भी मुहल्ले, पार्क, गुरु-घर, घर के खुले आंगन या खुली छत पर कच्ची या पक्की जगह पर अंदर या बाहर अर्थात् किसी भी जगह पर आसानी से खेला जा सकता है। यह ध्यान रखना है कि खेलने वाली जगह समतल और सपाट हो। ऊबड़-खाबड़ ऊँची-नीची या कंकड़-पत्थर आदि से भरी जगह न हो। ऐसे में खिलाड़ी के गिरने या चोट लगने का डर रहता है।

 

प्रशिक्षण के लिए सही उम्र क्या हो ?

वैसे तो दूसरे मार्शल आर्ट्स में शिक्षार्थी की उम्र पाँच साल से कम नहीं होनी चाहिए और इससे कम उम्र के बच्चे को दाखिल भी नहीं करवाना चाहिए, परंतु गतके का इतिहास गवाह है कि यहाँ छोटे-छोटे बच्चे बहुत दिलेरी के साथ माहिर उस्तादों की देख-रेख में बहुत ही बढ़िया प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार के कई बच्चे गतका मुकाबलों, प्रदर्शनियों, स्टेजों और टेलीविजन मीडिया आदि में आम ही खेलते हुए देखे जाते हैं। इस संबंध में हमारे पास दसम पातशाह साहिब श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी महाराज के साहिबजादों की लामिसाल उदाहरण है, जिन्होंने अपनी छोटी आयु में ही गतके का प्रशिक्षण हासिल किया और उचित समय आने पर नन्हीं जानों ने बड़ा साका कर दिखाया। उनका साहस, उनकी निडरता भरी अतुल शहादत हमारे लिए प्रेरणादायक है। वास्तव में यह तो शिक्षार्थी और उसके माता-पिता एवं माहिर उस्ताद पर निर्भर करता है कि वह बच्चे को ठीक तवज्जो देकर क्रमश: सही दिशा-निर्देशानुसार प्रशिक्षण शुरू करवाए। बच्चों को सबसे पहले शारीरिक व्यायाम से शुरू करके पैंतरों (स्त्रमभर महद्म) पर अच्छी तरह मेहनत करवा कर, छोटे-छोटे शस्त्रों के साथ क्रमबद्ध प्रशिक्षण आरंभ किया जा सकता है। बच्चे का दाखिला करवाने के बाद गतका शुरू करवाने से पहले शस्त्र उठाने से भी पहले निरंतर व्यायाम करवाओ, जैसे दौड़, बैठक आदि प्रत्येक मांसपेशी की कसरत व उसमें लचीलापन लाने के लिए स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज (स्ह्लद्रहृष्द्धद्बठ्ठद्द् श्वद्द्रहृष्द्बह्यद्), डंड बैठक आदि की जानी चाहिए। बच्चे की नियमित खुराक का ख्याल रखें, जिसमें दूध, दही, घी, मक्खन आदि के अलावा बादाम गिरी, चने, फल-फ्रूट, कच्ची सब्जियाँ आदि बढ़िया खुराक रखनी चाहिए। मार्शल आर्ट ‘गतका’ की क्लास से पहले पंद्रह मिनट और पंद्रह मिनट बाद में पानी या किसी अन्य किस्म का तरल पदार्थ (स्त्र) नहीं लेना चाहिए। शुरू-शुरू में शिक्षार्थी या बच्चे के शरीर में दर्द होता है। और वह थकावट भी महसूस करता है। धीरे-धीरे जब अभ्यास बढ़ता जाता है तो उसे इसमें अच्छा लगता है। बढ़िया खुराक होने से बच्चे में ऊर्जा का स्तर बढ़ता है और वह पहले की अपेक्षा ज्यादा तंदुरुस्त, फुर्तीला और हल्का महसूस करता है ।

 

‘गतका’ आत्म-रक्षा के रूप में मार्शल आर्ट ‘गतका’ सीखने का मुख्य मकसद आत्म रक्षा ही होता है। प्रत्येक को ही अपनी आत्म-रक्षा लिए यह सीखना जरूरी है। इसकी स्त्री या पुरुष दोनों को जरूरत है। लड़कियों को तो ख़ास तौर पर आजकल के हालात में घर से बाहर, यहाँ तक कि कई बार घर के अंदर भी हिंसा का शिकार होना पड़ता है। लड़कियों के साथ गली-मुहल्ले, बाजारों, स्कूलों-कॉलेजों आदि में छेड़खानी और छीना-झपटी की घटनाएँ आम ही होती हैं। ऐसे में लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। आए दिन अखबारों में दहेज-पीड़ित स्त्रियों को आग लगने की खबरें, ससुराल परिवार और पति द्वारा घरेलू हिंसा का शिकार आदि जैसी खबरें अक्सर पढ़ने को मिलती हैं। यदि लड़कियाँ गतके में निपुण हों तो वे आत्म-रक्षा करने में सफलता प्राप्त करें। गतका लड़कियों के लिए बहुत ही लाभप्रद है। यह गुरु साहिब की बख़शीश है। सिक्ख मार्शल आर्ट ‘गतका ‘ सीखने के बाद वे अपनी आत्म-रक्षा खुद कर सकती हैं। लड़कियों में आत्मविश्वास पैदा होता है। झिझक, शर्मीलापन, डरपोक होने की जगह उनमें निर्भयता वाली, सिंघानियों वाली, दलेराना सोच पैदा होती है। फिर पिता दशमेश की पुत्रियां ‘कौर’ रूप में जालिम के विरुद्ध डट कर खड़ी हो जातीं हैं। और समाज में सम्मान प्राप्त करती हैं।

 

अन्य मार्शल आर्ट्स की शैलियां वर्णनीय है कि आजकल कई तकनीकें आत्म-रक्षा के लिए प्रचलित हैं, जैसे- जूडो, कराटे, ताईक्वांडो, कुंग फू, किक बाक्सिंग आदि। इन सभी में ‘गतका’ अपना पृथक स्थान रखता है। बेशक मार्शल आर्ट के साथ जुड़ी प्रत्येक शैली आत्म-रक्षा के लिए समान रूप से लाभदायक होती है, परंतु गतका सिक्ख इतिहास से जुड़ी जंगजू शैली और पंजाब का गौरवमयी, सांस्कृतिक खेल होने के नाते हमें अवश्य इसे प्राथमिकता देनी चाहिए, क्योंकि इससे बच्चा अपनी विरासत, इतिहास और धर्म के साथ जुड़ेगा। जिस प्रकार जूडो में हाथ-पैर और टांगों को हथियार के रूप में प्रयोग कर सामने वाले पर हमला करना सिखाया जाता है और दक्षिणी कोरिया के राष्ट्रीय खेल ‘ताईकवांडो’ में भी हाथ-पैर से हमला करना सिखाया जाता है, इसी प्रकार ‘कुंग फू’ जापान का खेल है और चीन ‘कुंग फू’ के साथ जुड़ी इस शैली में शरीर व दिमाग को सामूहिक रूप से काम करने की कला सिखायी जाती है, ताकि मुसीबत के समय व्यक्ति इसके जरिये आत्म-रक्षा कर सके। इसी प्रकार गतका, जो कि एक लाठी-फ्री की लड़ाई होती है, इसे प्रशिक्षण के लिए ढाल – कृपाण की जगह इस्तेमाल किया जाता है। इसमें भी शस्त्रों द्वारा और बिना शस्त्रों के हाथ-पैर द्वारा अपने पैंतरों का इस्तेमाल करते हुए हमले और बचाव के तरीके के बारे में बताया जाता है। भक्ति और शक्ति के संगम से शरीर, दिमाग़ और मन की ताकत को एकत्रित कर शक्ति तथा एकाग्रता मिलती है, जिसे आजकल (स्ट्रख भट्ट) कहा जाता है। गतका खिलाड़ी इस एकाग्रता का प्रयोग मुसीबत के समय फ़ैसले लेकर आत्म-रक्षा के लिए करता है। निडर भावना का विकास गुरबाणी के माध्यम से होता है।

 

गुरबाणी हमें निर्भय और निर्वैर जैसे गुणों का धारक बनाती है। गुरबाणी के ओट- आसरे से सिक्ख गतकई सिंघ (शेर) के रूप में “अजीत हैं अभीत हैं” वाली स्थिति को प्राप्त होता है। सही गतकेबाज कभी अपने प्रशिक्षण का दुरुपयोग नहीं करता और भय भावना में विचरण करता हुआ शुभ गुणों का धारक बन जीवन निर्वाह करता है। ख़ुशी की बात है कि आजकल गतका खेल का भी अन्य खेल की तरह पंजाब में ग्रेडेशन हो चुका है। गतका के इंटर स्कूल मुकाबले, इंटर-कॉलेज मुकाबले, इंटरवरसिटी मुकाबले, लगातार करवाए जा रहे हैं तथा गतके के खिलाड़ियों को अन्य खेल की तरह जिला, राज्य, राष्ट्र स्तर पर खेलने का और अपनी काबलियत दिखाने का मौका मिल रहा है। गतका खिलाड़ियों को उचित मान-सम्मान भी मिल रहा है। स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्तर पर गतका खेल के खिलाड़ी निःशुल्क पढ़ाई कर सकते हैं। यदि बच्चा राष्ट्र स्तर पर गतका खेलों में या राज्य स्तरीय गतका खेल मुकाबलों में पोजिशन हासिल करता है तो उसके बोर्ड की कक्षा के परिणाम के समय कुल अंकों में क्रमशः २५ तथा १५ अंक और जुड़ जाते हैं। यह भी विद्यार्थियों के लिए अति लाभदायक है। पढ़ाई के पश्चात् नौकरी हेतु चयनित होने पर भी ग्रेडेशन सर्टिफिकेट का फ़ायदा मिल रहा है। अन्य खेल के खिलाड़ियों की तरह गतका खिलाड़ी को भी प्राथमिकता के आधार पर स्पोर्ट्स कोटे में रखा जाता है, इसलिए अन्य मार्शल आर्ट्स की जगह हमें हमारी अपनी धरती पर हमारे गुरु साहिबान द्वारा प्रदत्त जंगजू- कला ‘गतका शस्त्र विद्या’ को सीखना चाहिए तथा अपने बच्चों को भी सिखाना चाहिए। जो सीखते हैं वे अपने धर्म, अपनी विरासत और सभ्याचार के साथ और भी निकट से जुड़ जाते हैं, गुरमति के धारक बन जीवन व्यतीत करते हैं, क्योंकि गतका – कला में हमें अपनी विरासत की झलक दिखाई देती है। हमें फन है अपनी सिक्ख शस्त्र विद्या पर परमात्मा करे, हमारा यह मातृ-खेल, विरासती खेल, कौमी खेल दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की करे!