– डॉ. बेअंत सिंघ शीतल*
संसार के प्रत्येक मनुष्य की हार्दिक अभिलाषा होती है कि वह हमेशा आनंद से भरपूर सुखी जीवन व्यतीत करे। इस निश्चिंततापूर्वक प्रसन्न एवं सुखी जीवन के लिए परम आवश्यक है मानसिक शांति तथा शारीरिक आरोग्यता । इन्हीं की प्राप्ति के लिए गुरबाणी में अत्यंत प्रमाण मौजूद हैं : दुखु दरदु जमु नेड़ि न आवै ॥
कहु नानक जो हरि गुन गावै ॥ ( पन्ना १३०२ )
आजकल अक्सर कहा जाता है कि अब जमाना बदल गया है। लोग धर्म में रुचि नहीं लेते हैं । यहां तक कि कई लोग भगवान की हस्ती को भी नहीं मानते हैं। जमाना चाहे कितना भी बदल जाये और सारी कदरें – कीमतें बदल जाएं किंतु कुदरत की यह अटल हकीकत कभी नहीं बदलेगी : जेहा बीजै सु लुणै करमा संदड़ा खेतु ॥
(पन्ना १३४)
गुरबाणी में मानसिक शांति के लिए अत्यंत सुंदर ढंग से बिलकुल सरल मार्गदर्शन किया गया है जितु कीता पाईए आपणा सा घाल बुरी किउ घालीऐ ॥
मंदा मूल नकीच दे लंगी नदरि निहालीऐ ॥
(पन्ना ४७४)
प्रसन्नतापूर्वक सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी गई है कि किसी के प्रति मन में किसी भी प्रकार की ईर्ष्या, दुर्भावना मत रखो:
पर का बुरा न राखहु चीत ॥
तुम कउ दुखु नही भाई मीत ॥ ( पन्ना ३८६ )
बिलकुल सरल, सादा, आदर्शिक धर्म-मार्ग दिखाया श्री गुरु नानक देव जी ने इस मार्ग में किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं है । यह धर्म – मार्ग सिक्ख धर्म के नाम से विख्यात हुआ । यह धर्म सब प्रकार के वहमों, पाखंडों, कर्मकांडों, आडंबरों और तमाम रस्मों-रिवाज़ों के बंधनों से मुक्त है। दुनिया की तमाम मुसीबतों और दुखों से छुटकारा पाने के लिए गुरबाणी में अनमोल वचन हैं
–हरि हरि हरि आराधीऐ होईऐ आरोग ॥
(पन्ना ४४६)
–ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥
हरि नालि रहु तू मन मेरे दूख
सभि विसारणा ॥
(पन्ना ९१७)
— सिमरउ सिमरि सिमरि सुखु पावउ ॥
कलि कलेस तन माहि मिटावउ ॥ ( पन्ना २६२ )
नाम-सिमरन करते रहने से मनुष्य हर प्रकार के मानसिक एवं शारीरिक रोगों से मुक्त हो जाता है। भले ही कोई राजा – महाराजा क्यों न हो, नाम सिमरन से ही मानसिक शांति मिला करती है : प्रभ कउ सिमरह सि बेमुहताजे ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे ॥
( पन्ना २६३ )
इतना अवश्य है कि किसी वस्तु को पाने के लिए मनुष्य की इच्छा-शक्ति जितनी बलवान होगी उतनी शीघ्रता से वह वस्तु उसे प्राप्त हो जायेगी । इस इच्छा-शक्ति को बल मिलता है सर्वशक्तिमान परमात्मा पर भरोसा करने से :
जो मागउ सोई सोई पावउ अपने खसम भरोसा ॥
( पन्ना ६१९ )
जब मनुष्य प्रभु पर भरोसा कर लेता है फिर उसको दुख महसूस नहीं होता । वह दृढ़ निश्चय से गाता है :
जिस के सिर ऊपरि तूं सुआमी सो दुखु कैसा पावै ॥
(पन्ना ७४९ )
जब मनुष्य सच्चे हृदय से प्रभु का बन जाता है तो उसे परम आनंद की प्राप्ति हो जाती है जिस कारण वह दुनिया भर की तमाम दौलत और पदार्थों के खजाने भी तुच्छ समझता है : — जा तू मेरै वलि है ताकिआ मुहछंदा ॥
तुधु सभु किछु मैनो सउपिआ जा तेरा बंदा ॥
( पन्ना १०९६)
— अवरि उपाव सभि तिआगिआ दारू नामु लइआ ॥
ताप पाप सभि मिटे रोग सीतल मनु भइआ ॥
(पन्ना ८१७)
क्योंकि उसे पूर्ण भरोसा है :
तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥
सिमरत सुखु होइ सगले दुख जाहि ॥
(पन्ना ५१७)
संसार में कई लोग अत्यधिक धन-संपत्ति संग्रह करने को सुख समझते हैं तथा उसे एकत्रित करने के लिए कई प्रकार के धंधों में दिन-रात व्यस्त रहते हैं । गुरबाणी में फरमाया गया है : सुख नाही बहुतै धनि खाटे ॥ ( पन्ना ११४७)
यह भी बिलकुल अटल सत्य है कि कितनी भी धन-दौलत एकत्र कर ली जाए मनुष्य की कभी
भी तृप्ति नहीं हो सकती :
–सहस खटे लख कउ उठि धावै ॥
त्रिपति न आवै माइआ पाछै पावै ॥ अनिक भोग बिखिआ के करै ॥
नह त्रिपतावै खपि खपि मरै ॥
(पन्ना २७८)
–इस जर कारण घणी विगुती इनि जर घणी खुआई ॥
पापा बाझहु होवै नाही मुइआ साथि न जाई ॥
(पन्ना ४१७)
शारीरिक रोग से भी बड़े रोग मानसिक रोग होते हैं। प्रभु को मन से भुला देने से मनुष्य मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाता है । मानसिक रोगी की दशा शारीरिक रोगी से बदतर होती है। खसमु विसारि कीए रस भोग ॥
तां तनि उठि खलोए रोग ॥ मन अंधे कउ मिलै सजाइ ॥
वैद न भोले दारू लाइ ॥
(पन्ना १२५६)
संसार में बहुत कुछ ऐसा भी होता है जो आम तौर पर पसंद न करते हुए मनुष्य व्याकुल हो उठता है। कई बार ऐसी घटनायें घटती हैं जो मनुष्य की इच्छा के विरुद्ध होने के कारण वह बहुत ही चिंतित होता है। प्रभु का भक्त इन सब आधियों -व्याधियों के बावजूद धैर्य में रहता है। उसे पूर्ण विश्वास है कि इस संसार में जो कुछ भी हो रहा है प्रभु के अटल हुक्म के अनुसार ही हो रहा है उसकी आज्ञा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता । प्रभु हुक्म में रहने वाला मनुष्य संतोषपूर्वक सिर झुकाकर कहता है :
जो तुधु भाव साई भी कार ॥ ( पन्ना ४ )
कभी-कभी किसी अत्यंत प्रिय मित्र या परिवार के किसी अजीज़ सदस्य की मृत्यु होने पर साधारणतया मनुष्य शोकाकुल हो गहरी चिंता में डूब जाता है। इसके लिए भी गुरबाणी में मार्गदर्शन किया गया है :
चिंता ता की कीजीऐ जो अनहोनी होइ ॥
इहु मारगु संसार को नानक थिरु नही कोइ ॥
( पन्ना १४२९)
जो पैदा हुआ है उसे एक न एक दिन अवश्य मरना है। जीवन में शुभ कर्म करने चाहिए ताकि संसार में आना सफल हो जाए :
जो उपजिओ सो बिनसि है परो आजु कै कालि ॥
नानक हरि गुन गाइ ले छाडि सगल जंजाल ॥
( पन्ना १४२९ )
इसी हकीकत का मनुष्य को पूर्ण ज्ञान हो जाये तो वह अपना मूल पहचान कर, अपना जीवन उद्देश्य जानकर प्रभु-गुण-गायन करता रहता है:
मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु ॥ मन हरि जी तेरै नालि है गुरमती रंगु माणु ॥
(पन्ना ४४१)
मन प्रभु के साथ जोड़ लें तो सदा आनंद ही आनंद बना रहता है। फिर जीवन – मनोरथ पूरा हो जाता है; सारे दुख दूर हो जाते हैं:
अनदु सुहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥
( पन्ना ९२२ )