गुरबाणी में दर्ज सृष्टि-रचना का विधान

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April 03, 2025

-डॉ. रछपाल सिंघ

गुरबाणी सर्वकालीन सदीवी सच है । यह ‘धुर की बाणी’ है अथवा अकाल पुरख जी का ‘अगंमी हुक्म’ है। गुरबाणी में मानव जीवन से संबंधित सभी प्रकार की सामग्री उपलब्ध है। गुरबाणी आधुनिक वैज्ञानिक युग अथवा खोजों का आधार है। इसमें बहुत-सी सामग्री वैज्ञानिक पक्ष से संबंधित है। वैज्ञानिक खोज इस समय चर्म सीमा पर पहुंच चुकी है परंतु सृष्टि का आरंभ कब हुआ, के बारे में स्पष्ट नहीं है। विज्ञान की दृष्टि से हर वस्तु परिवर्तनशील है, ब्रह्मांड भी परिवर्तनशील है। यह लगातार फैल रहा है। विज्ञान के अनुसार आज से लगभग १८ अरब वर्ष पहले गैसों का एक बहुत बड़ा धमाका हुआ, जिस को वैज्ञानिओं ने “बिग- बैग ” के सिद्धांत का नाम दिया है। इस धमाके से पूरे ब्रह्मांड में धुंद ही धुंद हो गई। बहुत बड़ा धुंधूकार फैल गया। इससे असीम ऊर्जा पदार्थों में प्रवर्तित हो गई। यही पदार्थ जब ठंडे हुए तब सुंगड़कर असंख्य तारे और गृह बन गए । धरती जैसे गृह में हवा बन गई। ज़ोरदार बरसाते हुईं और कई दरिआ अस्तित्व में आ गए। परंतु इससे पहले क्या था यह कोई नहीं बता पा रहा। श्री गुरु नानक देव जी का इसके बारे में स्पष्ट फरमान है :
कवणु सुवेलावखतु कवणु कवण थिति कवणु वारु ॥
कवणि सि रुती माहु कवणु जितु होआ आकारु ॥ (पन्ना ४)

गुरबाणी के अनुसार सृष्टि की रचना से पहले आकाश, धरती, सूर्य, चांद, हवा, पानी, रात, दिन इत्यादि कुछ भी नहीं था । केवल धुंधूकार था । अकाल पुरख सुन्न समाधि में लीन थे।
अरबद नरबद धुंधूकारा ॥
धरणि न गगना हुकमु अपारा ॥
ना दिनु रैनिन चंदु न सूरजु सुन समाधि लगाइदा ॥ (पन्ना १०३५)

श्री गुरु नानक देव जी का फरमान है कि अकाल पुरख के हुक्म से सारा पसारा हुआ है और इसी से ही लाखों दरिआ बने :
कीता पसाउ एको कवाउ ॥
तिस ते होए लख दरीआउ ॥ (पन्ना ३)

आज के विज्ञान की धारणा है ब्रह्मांड में बहुत-सी धरती हैं, कई आकाश हैं, कई सूर्य हैं और कई चंद्रमा हैं। श्री गुरु नानक देव जी इस के बारे में लगभग कई सदियां पहले ही फरमान कर गए थे :
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥
के इंद चंद सूर के केते मंडल देस ॥
के सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥
केते देव दानव मुनि के केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥
केतीआ सुरती सेवक के नानक अंतु न अंतु ॥ ( पन्ना ७)

गुरबाणी के अनुसार तारा मंडलों और बृह्मांडों का भी कोई अंत नहीं। ये बेअंत हैं :
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥
तिथै लोअ लोअ आकार ॥
विवि हुक तिवै तव कार ॥
वेखै विगसै करि वीचारु ॥
नानक कथना करड़ा सारु ॥ (पन्ना ८)

जब प्रभु ने सृष्टि रचना करनी चाही तो उनके हुक्म से सृष्टि रचना हो गई। प्रभु का हुक्म आदि काल से निरंतर चल रहा है ।

हुकमी होवन आकार हुकमु न कहिआ जाई ॥ (पन्ना १)

इसी हुक्म से ही कई प्रकार की धरतियां, पर्वत, सूर्य, चांद और बृह्मांड अस्तित्व में आ गए। धरती, सूर्य, चांद, गृह, हवा, पानी अथवा समूची वनस्पति केवल एक अटल विधान (हुक्म) में ही बंधी हुई है। धरती पर विभिन्न प्रकार की ऋतुएं, दिन रात आदि सभी अनुशासन में हैं। धरती एक ऐसा स्थान है जिस पर विभिन्न प्रकार के जीव निवास करते हैं। गुरबाणी कथनानुसार अनुसार :
राती रुती थिती वार ॥
पवण पाणी अगनी पाताल ॥
तिसु विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥
तिसु विचि जीअ जुगति के रंग ॥
तिन के नाम अनेक अनंत ॥ (पन्ना ७)

गुरबाणी का सदीवी सच आधुनिक विज्ञान की पहुंच से अभी भी बहुत दूर है। कई सदियां बीत जाने के बाद भी मनुष्य गुरबाणी के दर्शाए वैज्ञानिक सच के कुछ अंश ही खोज सका है।