दसतार का सम्मान

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January 30, 2025

श्री रणवीर सिंह मांदी* श्री गुरु गोबिंद सिंघ जी ने ‘खालसा’ की सृजना करते समय पांच ककारों को धारण करने की परंपरा आरंभ की थी। उनमें एक ककार है केश । केशों की संभाल एवं अन्य हिफाजत के लिए दसतार अनिवार्य होती है । दसतार आदमी की आन-बान-शान है । दसतार न केवल सिक्ख की पहचान करवाती है बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी उभारती है। सिक्ख के सम्मान को बरकरार रखने और उसकी धार्मिकता का उद्घोष करने वाली उसकी दस्तार ही है ।

दसतार का जन्म हज़ारों साल पहले हुआ। स्वतंत्रता संग्राम में ३ मार्च, १९०७ ई. को लायलपुर में श्री बांके दयाल का गीत “पगड़ी संभाल जट्टा, पगड़ी संभाल ओए! ” शहीदे-आज़म स. भगत सिंघ जैसे क्रांतिकारियों की हौसला अफजाई के लिए कर्म-धर्म बन गया । यह तराना भारत के घर-घर में गूंजकर नौजवानों में नव-रक्त का संचार करने लगा और सरफरोशी की तमन्ना फांसी का फंदा चूमने को मचलने लगी ।

विश्व के कोने-कोने में सिक्खों ने अपनी मेहनत, बुद्धि और लगन से प्रत्येक क्षेत्र में अपनी योग्यता सिद्ध करके न केवल विदेशी राज्य के उद्योगों में अपना अहम रोल अदा कर उनकी आर्थिक प्रगति को बुलंदी पर पहुंचाया, बल्कि अपने देश के लिए विदेशी मुद्रा के भी द्वार खोले । पंजाब के सिक्ख सरदारों ने व्यापार, नौकरी-पेशे के लिए विदेशों में जाकर वहां की नागरिकता प्राप्त कर अपनी संस्कृति और धर्म के सूचक भव्य गुरुद्वारों का निर्माण करते हुए अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने में रुचि रखी है। कुछ देशों में पगड़ी को लेकर तनाव फैला हुआ है। इनमें इंग्लैंड और फ्रांस वे देश हैं जिनका भारत के साथ दो-तीन सौ साल पुराना खट्टा-मीठा सम्बंध रहा है। इंग्लैंड ने तो पगड़ी को मान्यता दे दी परंतु फ्रांस अभी इस विषय पर मौन है।

फ्रांसीसी जनरल वेंतूरा और अलार्ड को महाराजा रणजीत सिंघ ने अपनी सेना में उच्च पदों पर नियुक्त किया था। इतना ही नहीं, फ्रांस को प्रभुसत्ता प्राप्त कराने में (दसतारधारी) सिक्ख सैनिकों ने अपनी जान हथेली पर रखकर अहम रोल अदा किया था। उन फर्मों और कर्जों को भुलाकर अब फ्रांस सरकार सिक्ख विद्यार्थियों को स्कूलों-कॉलेजों में पगड़ी बांधकर जाने से मना कर रही है।

फ्रांस सरकार कानून की आड़ तले सिक्खों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रही है। फ्रांस सरकार सिक्ख सैनिकों और उनके परिवारों के बलिदान को भुला बैठी है। ऐसी बेवफाई के लिए किसी ने ठीक ही कहा है :
जब पड़ा वक्त गुलिस्तां पे तो खून हमने दिया,
जब बहार आयी तो कहते हैं, तेरा काम नहीं ।